Premanand Maharaj Darshan: प्रेमानंद महाराज के दर्शन नहीं कर सकेंगे लोग; सभी श्रद्धालुओं से की गई ये अपील

प्रेमानंद महाराज के दर्शन नहीं कर सकेंगे लोग; सभी श्रद्धालुओं से की गई ये अपील, वृंदावन के विश्वविख्यात संत हैं, दोनों किडनी खराब

Premanand Maharaj Darshan Band

Premanand Maharaj Darshan Band On Holi Soochna Radha Keli Kunj Vrindavan

Premanand Maharaj Darshan: वृंदावन के विश्वविख्यात संत प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन लोग नहीं कर सकेंगे। वह कुछ दिनों तक श्रद्धालुओं को दर्शन नहीं देंगे। दरअसल, प्रेमानंद महाराज अपनी पदयात्रा पर कुछ दिनों के लिए रोक लगा दी है। ये फैसला होली के पावन पर्व और उनके स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। जहां ऐसे में श्रद्धालुओं को प्रेमानंद महाराज के दर्शन के लिए कुछ दिनों का इंतजार करना होगा।

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प्रेमानंद महाराज के दर्शन अब होली तक नहीं

दरअसल, प्रेमानंद महाराज के दर्शन को लेकर श्री हित राधा केलि कुंज परिकर की तरफ से आधिकारिक तौर पर सूचना जारी की गई है। दी जा रही जानकारी में बताया गया है कि, प्रेमानंद महाराज के दर्शन अब रात में नहीं हो पाएंगे। महाराज जी के रात्रि पदयात्रा दर्शन होली तक के लिए बंद कर दिए गए हैं। सूचना में आगे सभी श्रद्धालुओं से की गई ये अपील की गई है कि वे होली तक प्रेमानंद महाराज के दर्शन के लिए न आयें।

प्रेमानंद जी महाराज के आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल 'भजन मार्ग' पर सूचना (Premanand Ji Maharaj Ratri Darshan Soochna) जारी की गई है। जिसमें कहा गया है- ''आप सभी प्रियजनों को सूचित किया जाता है कि होली के पावन पर्व के चलते व पूज्य महाराज जी के स्वास्थ्य की अनुकूलता को ध्यान में रखते हुए दिनांक 10 मार्च से 14 मार्च 2025, रात्रि 02:00 बजे से पूज्य महाराज जी की पदयात्रा नहीं निकलेगी।''

श्री हित राधा केलि कुंज परिकर श्रीधाम वृंदावन (Shree Hit Radha Kelly Kunj) की तरफ से आगे कहा गया, ''आप सभी प्रियजनों से प्रार्थना है कि अगर आप दर्शन के लिए आ रहे हैं तो उपरोक्त दिनों में दर्शन के लिए ना आयें। राधे राधे ! श्री हरिवंश!

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रात में सबको दर्शन देते प्रेमानंद जी महाराज

दरअसल, प्रेमानंद महाराज का आश्रम वैसे श्री हित राधा केलि कुंज है। जहां वह एक निर्धारित समय के लिए विराजमान रहते हैं। श्री हित राधा केलि कुंज में राधा कीर्तन, सत्संग और वार्तालाप में शामिल होकर प्रेमानंद जी महाराज के दर्शन किए जा सकते हैं। लेकिन वहां दर्शन के लिए सबका नंबर नहीं आ पाता। इसलिए प्रेमानंद महाराज स्वास्थ्य समस्या के बावजूद रोज रात्रि 2 बजे अपने एक अन्य आश्रम से निकलकर परिकर्मा मार्ग पर पैदल चलते हैं। जिससे सार्वजनिक रूप से बड़ी से बड़ी संख्या में श्रद्धालु उनके दर्शन कर सकें।

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प्रेमानंद महाराज के दर्शन के लिए हजारों की भीड़ लगती

प्रेमानंद महाराज वृन्दावन में जब परिकर्मा मार्ग पर पैदल निकलते हैं तो इस पदयात्रा में हजारों भक्त उनके दर्शन करते हैं। उनके दर्शन को लालायित श्रद्धालु सड़क के दोनों छोरों पर बड़ी संख्या में खड़े रहते हैं। लगभग दो-तीन किलोमीटर की लंबी लाइन लगी होती है। इस दौरान महाराज जी के दर्शन सबको हो पाते हैं। इस दौरान प्रेमानंद जी महाराज रुक-रुककर कुछ श्रद्धालुओं से बात भी कर लेते हैं। लेकिन प्रेमानंद महाराज के दर्शन को लेकर बढ़ती भारी भीड़ में कोई हादसा न हो जाये। इसे देखते हुए अब उनकी पदयात्रा बंद कर दी गई है।

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प्रेमानंद जी महाराज की दोनो किडनी खराब

राधारानी के परम भक्त प्रेमानंद जी महाराज के बारे में लोग ताज्जुब खाते हैं। बीते 17-18 सालों से महाराज जी की दोनो किडनी खराब हैं। लेकिन फिर भी महाराज जी के जीवंत और अद्भुत स्वरूप को देखा जा सकता है। दोनो किडनी खराब होने के बाद भी उनके चेहरे का तेज देखते ही बनता है। आज घर-घर प्रेमानंद जी महाराज को सुना जा रहा है और उनके बारे में चर्चा की जा रही है। लोग यह कहने पर मजबूत हैं कि आज के समय में अगर कोई असली संत है तो वह प्रेमानंद जी महाराज हैं।

प्रेमानंद महाराज सीधी और स्पष्ट बात बोलते हैं। चाहें भले ही वह लोगों को कड़वी लगे। महाराज जी के प्रवचनों ने आज पूरे देश और दुनिया में एक नई लहर सी ला दी है। क्या युवा और क्या बड़े सब प्रेमानंद जी महाराज को सुनना चाह रहे हैं, उनके दर्शन करना चाह रहे हैं। प्रेमानंद जी महाराज के मुखमंडल से निकला एक-एक शब्द लोगों को आकर्षित कर रहा है और उनमें अच्छे बदलाव की भावना को जाग्रत कर रहा है।

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प्रेमानंद महाराज का पूरा नाम क्या?

प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Ji Maharaj) का पूरा नाम प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज है। उनका जन्म कानपुर के एक गांव में हुआ था। प्रेमानंद महाराज 13 साल की उम्र में ही रात 3 बजे घर से संन्यास के रास्ते में चलने के लिए भाग आए थे। उस समय वह कक्षा 9 में पढ़ते थे। इसके बाद वह कभी घर नहीं लौटें और अपना पूरा जीवन भगवान को समर्पित कर दिया। उन्होंने शुरुवात में संन्यास के कई साल भगवान शिव में लीन होकर काशी में बिताए। इसके बाद वह वृंदावन आ गए और राधारानी के परम भक्त हो गए।

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